24
Apr
22

नफ़रत की राजनीति/The Politics of Hate!

https://www.youtube.com/watch?v=smEOziPuRLo&t=37s

01
Feb
22

Of Rights, Duties, Wants and Desires!

29
Jan
22

मुकम्मल अटरिया

The recent Coke Studio video ‘Tu Jhoom’ https://www.youtube.com/watch?v=7D4vNcK6D38 leaves me with a torrent of unshed tears and मुकम्मल अटरिया is an insignificant personal corollary.

किस आस में बैठे हो

कौन तुम्हे समझाये;

छिन्न-भिन्न सब ताने-बाने,

निष्काम तकली खड़काये।

आँखों का सैलाब बवंडर,

जज़ीरा डूबता  नहीं ।

गला दर्द से रुंध चुका है,

नश्तर चलता नहीं;

ढहता हुआ है खंडर तेरा,

क्यों लीपा-पोती फरमाये।

आस-पास की आस छोड़ रे,

अब दूर-सुदूर भग जाये।

आँख झपक और गांठ खोल,

उड़ डोर कहीं तो जाये।

बंजारों की दुनिया बंजर,

परिजन-साथी बस इक मंज़र।

रैन-बसेरा घर न तेरा,

काहे को तरसाये।

झीना हुआ पुलिन्दा बन्दे,

आसमान दर्शाये।

बहुत हुआ अब छोड़ यह तृष्णा,

मुकम्मल अटरिया न आये।

आश्ना-ए-राज़ ख़ामोशी मेरी,

नाहक जिरह कराये।

02
Jan
22

वजूद की तलाश और PM की चुप्पी!

14
May
21

Death, Despair and ‘positive’ Callousness!

03
May
21

कड़ुवा सच

Please DO check the following links that are not part of the ‘Godi Media’. Watch, think, analyse, introspect, share and act:

https://thewire.in/government/india-covid-19-government-crime-against-humanity

https://www.newslaundry.com/2021/04/28/mps-panel-predicted-second-covid-wave-in-november

https://thewire.in/government/covid-19-health-crisis-central-vista-essential-service

14
Feb
21

गुलाबी सुबह

याद आते हैं
वह
पेड़, पत्तियाँ, चौर और माटी,
जिनमें बहती जंगल की हवा
हमेशा खुशबु थी लाती।
याद आती हैं
वह
अनेक आवाज़ों की भनक
वाली जीवित चुप्पी,
बढ़ती हुई दिल की धड़कन
और नशीली जिस्मानी सिरहन।
याद आते हैं
वह
अनगिनत लहमें –
मीठी काली चाय में डुबोई
सुखी रोटी,
Beat-guard की खिलखिलाती
नन्ही सी बेटी;
कपड़ों में बसती धुयें की रूह,
कंटीली झाड़ी में जमा
न जाने किसका लहू;
दूर किसी पानी की कल-कल,
रपटों पर निकले
न जाने कितने पग-पल;
रात के अंधेरे में काली चट्टान सा
खामोश हाथी,
ठडं में ठिठुरता मैं और
मेरे साथी;
लंगूर की हूप और सांभर की धांक,
अदृष्य राजा की थी कुछ
अनोखी साख।
याद हैं
वह
निर्लज्ज हुक्मरानों की
बेखौफ मनमानी,
विस्थापित वन-वासियों की
असहाय कहानी;
उद्योगपतियों के कन्धों पर
बैठा सरकारी बन्दर, जो
देखता और दिखाता था
आने वाले कल का
भयानक इक मंज़र;
आज
कितना याद करूँ?
अब लगता नहीं है मन मेरा,
बस
मेरी साँसों को
मिला देना उस भीनी मिट्टी
में जहाँ
हर सुबह हो गुलाबी,
दोपहर पतझड़ी,
और साँझ
जैसे आँखें कोई
गीली।
06
Feb
21

सीने में आग

https://youtu.be/jIZVG3SrbQY

21
Jan
21

एक असभ्य सवाल

https://youtu.be/s7j5yiRBfv4

16
Jan
21

To be jabbed or not to be jabbed!

https://youtu.be/wMyMvfwZ72Q




Enter your email address to subscribe to this blog and receive notifications of new posts by email.

Join 116 other subscribers
April 2024
M T W T F S S
1234567
891011121314
15161718192021
22232425262728
2930